Tuesday, August 31, 2010

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव और गुर्जर..!!

दिल्ली विश्वविद्यालय मे छात्र संघ चुनाव 3 सितम्बर को होंगे. विभिन्न छात्र संगठनों की ओर से 41 छात्र मैदान मे हैं. एक ओर पुराने प्रतिद्वंद्वी NSUI और ABVP हैं तो दूसरी ओर SFI , AISF , और INSO . किसी के पास जाति और संगठन की ताकत है तो किसी के पास घिसे पिटे मुद्दे. ग्लैमर का रंग अब फीका हो गया है पर जाति और पैसे का बोलबाला जारी है. वोट दिलाने की भूमिका में अब पुराने दादा टाइप छात्र नेता नहीं बल्कि चतुर और कुशल मैनेजर सामने आ गए हैं. यूथ मैनेजरों के दम पर चलने वाले इस चुनाव मे जीत उसी की होगी जो ज्यादा से ज्यादा छात्रों के बीच कनेक्शन बिठाने का दमखम रखता हो.
कभी जुझारू नेताओं और शख्स के नाम पर पहचान बनाने वाला डूसू ( DUSU ) अब सिर्फ नाम का रह गया है. उसके शानदार और मजबूत भवन को कुछ समय पहले नेस्तनाबूद कर दिया गया. बिन भवन वाले डूसू के मंच पर इस बार अध्यक्ष पद पर ABVP ने जीतेन्द्र चौधरी को खड़ा किया है. जीतेन्द्र ने डूसू चुनाव लड़ने के लिए बौद्ध अध्ययन विभाग में ऍम ए में दाखिला लिया है.  NSUI के हरीश चौधरी का भी यही हाल है. हरीश ने अरविंदो कॉलेज सांध्य में दाखिला लिया है. दोनों अध्यक्ष पद उम्मीदवार हमारी गुर्जर बिरादरी से हैं. लोहे को लोहा ही काटेगा वाली तर्ज़ पर दोनों बड़े संगठनों ने दिल्ली में दमखम रखने वाली गुर्जर बिरादरी को आमने सामने ला खड़ा किया है. इनके मुकाबले को रोचक बनाने के लिए अन्य संगठनों के 8 और उम्मीदवार मैदान में हैं.
उपाध्यक्ष पद पर NSUI ने जहाँ वर्धन चौधरी को उतारा वहीँ ABVP ने प्रीया डबास को. सचिव पद पर ABVP ने जाट बिरादरी की छात्रा नीतू डबास को उतारा तो NSUI ने उसी बिरादरी से दीपिका देशवाल को. आखिरी संयुक्त सचिव के पायदान पर ABVP ने गढ़वाली पंडित के रूप मे सौरभ उनियाल को उतारा तो NSUI ने आरक्षित कोटे से अक्षय कुमार को खड़ा किया है. इन सब के बीच INSO ने तीन पदों पर जाट और एक पद पर गुर्जर उम्मीदवार को उतार कर छात्रों के जातिगत वोट बैंक में सेंध लगा दी है.
डूसू का मंच आम छात्रों का कैरिअर बनाने में उतना मददगार भले ही साबित ना हुआ हो पर यहाँ प्रतिनिधित्व करने वाले छात्र नेताओं ने अपना कैरिअर खूब चमकाया है. इस लिहाज से देखें तो भाजपा नेता अरुण जेटली हों या विजय गोयल. कांग्रेस सांसद अजय माकन हों या कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा. ये सभी एक समय में डूसू के अध्यक्ष रहे हैं. इनके अलावा भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता भी एक समय डूसू के उपाध्यक्ष रहे हैं. इन नेताओं के अलावा सांसदों, विधायकों, और पार्षदों की लिस्ट काफी लम्बी है जो इस मंच से आने के बाद क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपना कैरिअर चमकाते रहे हैं.
इन सब के बीच एक बात तो लगभग तय है कि इस बार चाहे ABVP जीते या NSUI , डूसू अध्यक्ष तो गुर्जर ही होगा. इन दो दलों के अलावा किसी और दल का उम्मीदवार अध्यक्ष पद जीते ऐसी उम्मीद बहुत कम है. मै अभी से कह सकता हूँ कि लगातार दो सालों तक गुर्जर छात्रों का डूसू के अध्यक्ष पद पर काबिज़ रहना, आने वाले समय में गुर्जर समुदाय के लिए एक शुभ संकेत है.

Monday, August 23, 2010

Social/Community Service In Its Truest Form..!!

Today I am going to introduce you to a young Gurjar guy doing a very big commendable job for his community and the society as well.
This is Mr. Chintamani Kapasia. A native of village Jaunth, Mr.Kapasia is employed with Central Govt. for the last 12 yrs.
Since his employement, he found that no other gurjar youth of his village could get a govt. job. Instead, the youth was more or less engaged in alcoholic addiction and other anti society activities. So Mr. Kapasia decided to coach his village youth for physical ability tests and competitive examinations.
At first he created a youth club and with the permission of his village authorities, he started his one of its kind school. As no rooms and other facilities were available, this school was opened in a ground under tents.
Mr. Kapasia would come to his village every Friday night and the next two days ie; Saturdays & Sundays are dedicated to his selfless mission. All this for free. Mr. Kapasia do not charge a single paisa from any body for his services.
Around two months ago when a student of Mr. Kapasia, Rinku got selected in Central Reserve Police Force ( C.R.P.F. ) people from nearby villages were also impressed by this laudable job of Mr. Kapasia. Now he has 28 students in his class.
Mr. Kapasia is prepairing his students for U.P. police, Delhi police, paramiltary, army, raiways and banking entrance examinations. Mr. Tridiv Kapasia, brother of Mr. Chintamani Kapasia is supporting his mission by training the youths for physical tests.
This confident mission of Mr. Kapasia has changed the lives of the youth of his area.
I wish every village or block in India should have such motivated hardworkers like Mr. Chintamani Kapasia, who are doing self less social service in its truest form.

Monday, August 9, 2010

गुर्जरों के साथ अन्याय क्यों..??

This article is taken from 'Gurjar Karwan' magazine. And the best thing about it is, that this article has been written by a non gurjar, Mr. Pushpesh Pant.


Mr. Pant is Ex. Dean J.N.U. & Ex. Professor International Studies.

"भारतीय इतिहास मे गुर्जरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. आज से लगभग हज़ार वर्ष पहले गुर्जर प्रतिहार नामक एक बड़े प्रतापी राजवंश ने उत्तर भारत के बहुत बड़े भू भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया था. आज जो प्रांत गुजरात के नाम से जाना जाता है उसका नाम यही सूचित करता है कि गुर्जरों का नाम इस क्षेत्र के साथ घनिष्ठ रूप से जुडा रहा है.

इसे एक बहुत बड़ी विडम्बना ही कहा जा सकता है कि गुर्जर शब्द के अपभ्रंश गुज्जर के बदलने के साथ साथ इस स्वाभिमानी समुदाय की प्रतिष्ठा और सामाजिक स्थिति में भी दुखदायक बदलाव हुआ है.

पिछले वर्ष जब राजस्थान में आरक्षण के मुद्दे को ले कर गुर्जर-मीणा संघर्ष का विस्फोट हुआ था तब लोगों को अचानक यह बात याद आई कि गुर्जरों के साथ कितना अन्याय अब तक होता रहा है. उस वक़्त जो आश्वासन दे कर गुर्जरों के गुस्से को ठण्डा किया गया था उन्हें पूरा करने की बात आज किसी को याद नहीं रह गयी है.

गुर्जरों के साथ छल कपट नया नहीं है. औपनिवेशक काल में अंग्रेज़ अफसरों से सुनी सुनाई बातों के आधार पर और गुर्जरों के साथ स्वार्थ के टकराव के कारण दूसरी जातियों के आरोपों को सच मान कर उन्हें जरायम पेशा प्रवृति वाला मान लिया गया. गुर्जर जो पहले ही वंचित और अभावग्रस्त थे, इस पूरे दौर में शिक्षा और सरकारी नौकरियों के लाभ से वंचित ही रह गए. आज किसी भी कसौटी को अपनाएं बहुसंख्यक देहाती गुर्जरों को पिछड़े वर्ग में ही शामिल किया जा सकता है. झगडे कि असली जड़ यही है कि आज भले ही पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण कि व्यवस्था सरकार ने कर दी हो, वास्तव में इसका कोई लाभ गुर्जरों को या उन जैसे दूसरे समुदायों को कतई नहीं हो सकता.

राजस्थान की ही बात करें तो गुर्जरों से कहीं कम पिछड़े और वास्तव में अगड़े और तगड़े मीणाओं का शुमार अनुसूचित जनजातियों में किया जाता है और इसका भरपूर लाभ वे पीढ़ी दर पीढ़ी अब तक उठाते रहे हैं. टकराव का असली कारण मीणाओं का अपने राजनैतिक एकाधिकार में किसी भी दखलांदाजी स्वीकार ना करने कि मानसिकता है. पिछले दो ढाई वर्ष में संसद और विधान सभा के निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्परिसिमन हुआ है जिसके कारण अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए निर्धारित सीटें विस्थापित हुई हैं. इसका सीधा नुक्सान गुर्जरों को होता नज़र आ रहा है. गुर्जर बहुल इलाके वाली सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने का लाभ मीणा ही उठा सकते हैं और अब तक अपने इलाके और लोगों का समर्थ प्रतिनिधित्व करने वाले गुर्जर नेताओं को हाशिये पर रख दिया जायेगा.

कभी अपने यशस्वी पिता राजेश पाईलट कि विरासत सँभालने वाले सचिन पाईलट को लोक सभा में पहुंचने के लिए अंततः अजमेर शरीफ कि राह तलाश करनी पड़ी. यह बात याद रखने लायक है कि तेजस्वी और प्रतिभाशाली करिश्माई व्यक्तित्व वाले सचिन पाईलट के लिए ऐसा करना संभव था पर हर किसी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती.

आज से कई बरस पहले जब चौधरी चरण सिंह ने गैर कांग्रेस वाद के आरंभिक दौर में 'अजगर' वाला फ़ॉर्मूला ईजाद किया था. तब यह समझाया गया था कि अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत आदि सभी जातियों की बराबर की हिस्सेदारी इस संयुक्त मोर्चे में रहेगी. पर बहुत जल्दी यह बात साफ़ हो गयी कि चौधराहट चलेगी सिर्फ जाटों की ही. चौधरी चरण सिंह खुद कुछ समय के लिए भारत के प्रधानमन्त्री भी बन गए पर गुर्जरों के कल्याण के लिए उन्होंने ख़ास कुछ किया हो याद नहीं पड़ता.

यहाँ इस बात का उल्लेख करना बेहद जरुरी है कि जहाँ तक गुर्जर नेताओं का सवाल है उन्होंने कभी भी जातिवाद को भुनाने की चेष्टा नहीं की. राष्ट्रीय स्तर पर सबसे कद्दावर हैसियत वाले राजेश के नाम के साथ वायु सेना में उनकी नौकरी और देश सेवा सूचित करने वाला 'पाईलट' नाम लगा था और इसे ही सचिन भी इस्तेमाल करते हैं.

यह बात भी याद रखने लायक है की गुर्जरों ने निश्छल, निष्कपट भाव से दिए गए आश्वासनों पर हमेशा ही यकीन किया है और लगन के साथ सेना या सरकार की नौकरी की है. राजस्थान में राजनैतिक रस्साकश ज्यादातर राजपूतों और जाटों के बीच ही चलती रही है. हरियाणा के जाटों के दबदबे को चुनौती देने का जिगरा गुर्जरों से कहीं अधिक संख्या वाले अहीर - यादवों तक को नहीं हो सकता. उत्तर प्रदेश और दिल्ली में गुर्जर समुदाय छितराया हुआ है और कहीं भी एक ऐसे वोट बैंक के रूप में नहीं जिसकी चिंता किसी बड़े नेता को हो. यही दुर्भाग्य गुर्जरों की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है.

अंत में एक बात साफ़ करने की जरुरत है. इन पंक्तियों का लेखक सैद्धांतिक रूप से जन्म या जाति के आधार पर अनियतकाल तक आरक्षण का विरोधी है और यह भी मानता है की राजनैतिक मौका परस्ती में आरक्षण का दायरा निरंतर बढाया जाना राष्ट्र हित में नहीं. मगर इस बारे में लेखक के मन में लेशमात्र भी संदेह नहीं की गुर्जरों की लडाई न्याय की लड़ाई है. यदि गुर्जर अपने को अनुसूचित जाति में शामिल किये जाने की मांग कर रहे हैं तो इसके तर्कसंगत और जायज कारण हैं.

आज अगर कर्नल बैंसला जैसे सेना के अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अफसर को खाकी वर्दी उतार पारम्परिक धोती पहन, पगड़ी सम्भालकर रेल की पटरी या राजमार्ग पर धरना देने बैठने को मजबूर होना पड़ता है तो यह हम सभी के लिए शर्म और चिंता की बात है. गुर्जरों के साथ न्याय किया जाना चाहिए और जबतक हमारा सविंधान आरक्षण की व्यवस्था लागू रखता है तब तक गुर्जर समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिए. इस मामले में दोहरे मानदंड या पाखण्ड को स्वीकार नहीं किया जा सकता.'

Wednesday, August 4, 2010

Youth Gurjar Federation Doing Excellent Job.

Youth Gurjar Federation organizes a Football Tournament on 6,7,8 August 2010 at stadium in Sector 21 Noida.YGF is also active for sports development of youths. So dear friends please come and join us at Noida. Entry for team is open & Win a prize like 1st Team -10,000, 2nd Team 6,000, 3rd Team-4,000 Entry Fee 3k & age limit 23yr for more details contact Prajesh -9873580588 you can also email at, sports@youthgurjar.com


Please contact Y.G.F. for further querries.