मित्रों चलिए आज तीन-चार दशकों पहले और अब के पारिवारिक ढांचे पर चर्चा करते है | एक समय था, जब परिवार संयुक्त हुआ करता था, प्रेम और विश्वास के सूत्र में बंधा हुआ करता था | एक ऐसा समूह जिसमे घर के चंद अनुभवी और योग्य परिवार की दिशा निर्धारित करते थे और बाकि के सदस्य उनके विश्वास में विश्वास करते हुए उस दिशा में अग्रसर होते थे | बहुत सुख, शांति और अंदरुनी ताक़त महसूस होती थी तब | एक का अनियोजित बोझ जब दस कंधे ढोते थे, भार का पता ही नहीं चलता था, एक की ख़ुशी के क्षण का जब एक समूह भोग करता था, खुशियाँ और उससे मिलने वाला संतोष कई गुना बढ़ जाया करता था |
समय के साथ आये बदलाब ने संयुक्त परिवार के ढांचे की न केवल नींव हिला दी, बल्कि स्थिति अब यह है कि अब उस ढांचे के भग्नावशेष ही कहीं यदा-कदा दिख पाते है | बीते दो- चार दशकों में समाज में किन-किन स्तरों पर ऐसा क्या परिवर्तन हों गया, जिसने न केवल कानूनी तौर पर, बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी परिवार की व्याख्या " पति-पत्नी और उनके बच्चों " तक ही सिमित कर दी |
कई कारण गिनाये जा सकते है इस गलत दिशा में हुए बदलाब के, जिनमे से कुछ सहज ही परिलक्षित होते है, मसलन :
१) भौतिक शिक्षा को बढावा और नैतिक शिक्षा के प्रति उदासीनता
२) भूमंडलीकरण का बढ़ता प्रभाव
३) स्व-सम्पूर्णता की बलवती होती भावना
४) आपसी विश्वास और ईमानदारी में गिरावट
मैंने कहीं एक लेख पढ़ा था, स्वसामर्थ्य का बढ़ना, एक दुसरे पर आधारित होने की भावना का दिन प्रतिदिन कम होता जाना भी बिखराव की बड़ी वजह है, उदहारण कुछ यूँ दिया गया था कि " शेर संयोगवश ही झुंड में चलते दिखलाई पड़ते है, ये तो भेड़-बकरिया हैं जो झुंड में चला करती हैं " | तो क्या इंसानो का दिन प्रतिदिन बढ़ता सामर्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में, धन अर्जन के क्षेत्र में, भी एक बड़ी वजह है इस तेजी से पैर पसारते अलगाव की |
चलिए इस चर्चा को अपने-अपने अनुभवों के आधार पर आगे बढाते है और कोशिश करते है वास्तविकता के करीब के निष्कर्ष तक पहुचने की | संभव है कोई कमजोर कड़ी दिख जाये, जिसकी समय रहते मरम्मत हो सके और कुछ कदम उस अमूल्य ढांचे के पुनःनिर्माण क़ी तरफ बढ़ चलें और फिर कारवां बनता चला जाये |
समय के साथ आये बदलाब ने संयुक्त परिवार के ढांचे की न केवल नींव हिला दी, बल्कि स्थिति अब यह है कि अब उस ढांचे के भग्नावशेष ही कहीं यदा-कदा दिख पाते है | बीते दो- चार दशकों में समाज में किन-किन स्तरों पर ऐसा क्या परिवर्तन हों गया, जिसने न केवल कानूनी तौर पर, बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी परिवार की व्याख्या " पति-पत्नी और उनके बच्चों " तक ही सिमित कर दी |
कई कारण गिनाये जा सकते है इस गलत दिशा में हुए बदलाब के, जिनमे से कुछ सहज ही परिलक्षित होते है, मसलन :
१) भौतिक शिक्षा को बढावा और नैतिक शिक्षा के प्रति उदासीनता
२) भूमंडलीकरण का बढ़ता प्रभाव
३) स्व-सम्पूर्णता की बलवती होती भावना
४) आपसी विश्वास और ईमानदारी में गिरावट
मैंने कहीं एक लेख पढ़ा था, स्वसामर्थ्य का बढ़ना, एक दुसरे पर आधारित होने की भावना का दिन प्रतिदिन कम होता जाना भी बिखराव की बड़ी वजह है, उदहारण कुछ यूँ दिया गया था कि " शेर संयोगवश ही झुंड में चलते दिखलाई पड़ते है, ये तो भेड़-बकरिया हैं जो झुंड में चला करती हैं " | तो क्या इंसानो का दिन प्रतिदिन बढ़ता सामर्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में, धन अर्जन के क्षेत्र में, भी एक बड़ी वजह है इस तेजी से पैर पसारते अलगाव की |
चलिए इस चर्चा को अपने-अपने अनुभवों के आधार पर आगे बढाते है और कोशिश करते है वास्तविकता के करीब के निष्कर्ष तक पहुचने की | संभव है कोई कमजोर कड़ी दिख जाये, जिसकी समय रहते मरम्मत हो सके और कुछ कदम उस अमूल्य ढांचे के पुनःनिर्माण क़ी तरफ बढ़ चलें और फिर कारवां बनता चला जाये |