हमारे देश को आज़ाद करने की जंग मे गुर्जर समाज का योगदान क्या था यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है. अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए गुर्जर जंगलों में छिप कर अंग्रेजों पर वार करते थे. भारत वर्ष को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने के लिए यह जंग जरुरी थी और इसीलिए गुर्जर जानवरों के साथ जंगलों में जीवन यापन करने लगे. जंगलों में रहने के कारण गुर्जर शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित रहे. अगर उस समय शहरों में रहकर अंग्रेजों की सत्ता को स्वीकार लेते तो आज हम भी बड़े पैमाने पर शिक्षित होते और शायद आरक्षण की जरुरत न महसूस करते. हमारे पूर्वजों को लगा था कि आज़ादी के लिए दी गयी उनकी क़ुरबानी के बदले उन्हें वह सब कुछ तो मिलेगा ही जो एक सभ्य नागरिक का अधिकार है, लेकिन अफ़सोस की सरकारें चाहे कोई भी रहीं, गुर्जर हमेशा उपेक्षा के शिकार ही रहे.
गुर्जर प्रतिहारों के शासन का अंत और देश कि गुलामी एक साथ शुरू हुई. आज हालत यह है कि एक समय इस देश पर राज़ कर चुका गुर्जर समुदाय आज अनुसूचित जनजाति की मांग को लेकर रेल पटरियों पर जमा है. राजनितिक पार्टियों द्वारा कभी हाँ कभी ना करते रहना, समुदाय की भावनाओं से खेलते रहना आखिर कब तक चलेगा. क्या वतन पर मरने वालों के साथ स्वतंत्र भारत में ऐसा व्यवहार करना उचित है..??
गुर्जर समुदाय पहले देश को आज़ाद करने की लड़ाई लड़ा और आज इस व्यवस्था से लड़ रहा है. जब तक भारत की कोई भी जाति अपने हक़ से दूर होगी तब तक गणतंत्र के लिए पूर्वजों की सोच अधूरी ही रहेगी.
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