सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन भैरों सिंह खटाना का जन्म सन 1868 में ग्राम खेड़ली कैमरी, तहसील नादौती जिला करौली राजस्थान के श्री हरगोविंद सिंह खटाना के परिवार में हुआ।
आपने फौजी प्रशिक्षण लाहौर में लिया तद्पश्चात सैकिंड बटेलियन फ्रंटियर फ़ोर्स में भर्ती हुए। सन 1930 में कैप्टन भैरों सिंह खटाना 4 नायक 18 जवानों के साथ सोमालिलैंड में एक माउन्टेन घुड़सवार इन्फेंटरी का हिस्सा बन कर गए तथा 19 दिसंबर 1903 को जिन्दबली की लड़ाई में सिपाही धन्नाराम गुर्जर को गिरते हुए और बहुत कठिनाइयों में फंसा हुआ देखा तो भैरों सिंह अकेले ही वापस मुड़े और दुश्मन के घुड़सवार दस्तों को चीरते हुए, भारी गोलीबारी की परवाह न करते हुए सिपाही धन्नाराम को अपने घोड़े पर लाद कर युद्ध के मैदान से बाहर निकाल लाये। उसके बाद वापस जाकर दुश्मन दस्ते का सफाया कर दिया।
इनकी इस बहादुरी के लिये इन्डियन ऑर्डर ऑफ़ मेरिट (O I M) मैडल दिया गया। बाद में इसी लड़ाई के दौरान और अधिक शूरवीरता दिखाने के कारण श्री भैरों सिंह खटाना को ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया (O B I) पदक से विभूषित किया गया।
इस बहादुरी के लिए अंग्रेज़ सम्राट ने श्री भैरों सिंह खटाना से जब उनकी उत्कंठ इच्छा पूछी तो युद्धपुरोधा श्री खटाना ने गुर्जरों को सेना में भर्ती कराने के लिये सम्राट से इजाजत पायी। प्रसन्न सम्राट ने गुर्जरों के लिये सेना में 40 प्रतिशत भर्ती के आदेश कर दिए। इस महान शूरवीर को अपनी बहादुरी, कौशल और कर्तव्य परायणता के फलस्वरूप उनकी तीन पीढ़ियों को लगातार पैंशन मिलती रही। जयपुर महाराज ने श्री खटाना को 'राजस्थान-केसरी' की उपाधि देकर विभूषित किया तथा 100 रुपये प्रतिमाह पुरस्कार स्वरूप पैंशन जीवित रहने तक भेजते रहे।
ऐसे वीर की अमरगाथायें ही हमारी प्रेरणा का स्त्रोत हैं। आज आपके परिवार में से 4 पौत्र और 6 प्रपौत्र भारतीय सेना में विभिन्न रेजिमेंट में भर्ती होकर राष्ट्र सेवा में अपनी अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 402)
आपने फौजी प्रशिक्षण लाहौर में लिया तद्पश्चात सैकिंड बटेलियन फ्रंटियर फ़ोर्स में भर्ती हुए। सन 1930 में कैप्टन भैरों सिंह खटाना 4 नायक 18 जवानों के साथ सोमालिलैंड में एक माउन्टेन घुड़सवार इन्फेंटरी का हिस्सा बन कर गए तथा 19 दिसंबर 1903 को जिन्दबली की लड़ाई में सिपाही धन्नाराम गुर्जर को गिरते हुए और बहुत कठिनाइयों में फंसा हुआ देखा तो भैरों सिंह अकेले ही वापस मुड़े और दुश्मन के घुड़सवार दस्तों को चीरते हुए, भारी गोलीबारी की परवाह न करते हुए सिपाही धन्नाराम को अपने घोड़े पर लाद कर युद्ध के मैदान से बाहर निकाल लाये। उसके बाद वापस जाकर दुश्मन दस्ते का सफाया कर दिया।
इनकी इस बहादुरी के लिये इन्डियन ऑर्डर ऑफ़ मेरिट (O I M) मैडल दिया गया। बाद में इसी लड़ाई के दौरान और अधिक शूरवीरता दिखाने के कारण श्री भैरों सिंह खटाना को ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया (O B I) पदक से विभूषित किया गया।
इस बहादुरी के लिए अंग्रेज़ सम्राट ने श्री भैरों सिंह खटाना से जब उनकी उत्कंठ इच्छा पूछी तो युद्धपुरोधा श्री खटाना ने गुर्जरों को सेना में भर्ती कराने के लिये सम्राट से इजाजत पायी। प्रसन्न सम्राट ने गुर्जरों के लिये सेना में 40 प्रतिशत भर्ती के आदेश कर दिए। इस महान शूरवीर को अपनी बहादुरी, कौशल और कर्तव्य परायणता के फलस्वरूप उनकी तीन पीढ़ियों को लगातार पैंशन मिलती रही। जयपुर महाराज ने श्री खटाना को 'राजस्थान-केसरी' की उपाधि देकर विभूषित किया तथा 100 रुपये प्रतिमाह पुरस्कार स्वरूप पैंशन जीवित रहने तक भेजते रहे।
ऐसे वीर की अमरगाथायें ही हमारी प्रेरणा का स्त्रोत हैं। आज आपके परिवार में से 4 पौत्र और 6 प्रपौत्र भारतीय सेना में विभिन्न रेजिमेंट में भर्ती होकर राष्ट्र सेवा में अपनी अहम् भूमिका निभा रहे हैं।
सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 402)
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