आप जम्मू और कश्मीर के खारी गोत्र के गुर्जर थे। आपके पिता का नाम चौ. गौस बक्श था। आपने 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स कॉलेज जम्मू से स्नातक की डिग्री ली। तत्पश्चात 1922 में जम्मू और कश्मीर फौज में सैकिण्ड लेफ्टिनेंट से भर्ती हुए। 1937 में आप कर्नल बने और द्वितीय विश्व युद्ध पर जाने से पहले 1939 में आपने सैकिण्ड जे.के.राइफल्स की कमान सम्भाली।
रियासती फौज की उस रेजिमेंट को अंग्रेज हुकूमत ने मोर्चे पर भेजने के लिये माँगा तो महाराजा हरि सिंह ने इस शर्त पर यह रेजिमेंट भेजी कि उसकी कमान मेरा अफसर ब्रिगेडियर चौ. ख़ुदा बक्श ही करेगा। अंग्रेजों ने यह शर्त मान ली। आपने अपनी रेजिमेंट की कमान बड़ी बहादुरी से की और इसके फलस्वरूप आपको ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इण्डिया की पदवी से विभूषित किया गया। इस पदवी के लिये आपको 450 रुपये मासिक वजीफा तीन पुश्तों के लिये और मुल्तान में जागीर भी दी गयी।
इस पदवी के साथ ही आपको ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में कमीशन दिया गया। 1946 में जम्मू एवं कश्मीर सेना के कमांडर इन चीफ बने और 1950 में इसी पद से रिटायर हुए। 1962 में चीनी हमले के समय रिटायर्मेंट के बावजूद भी आपने अपने देश के लिये सेवाएं दीं।
सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 404)
रियासती फौज की उस रेजिमेंट को अंग्रेज हुकूमत ने मोर्चे पर भेजने के लिये माँगा तो महाराजा हरि सिंह ने इस शर्त पर यह रेजिमेंट भेजी कि उसकी कमान मेरा अफसर ब्रिगेडियर चौ. ख़ुदा बक्श ही करेगा। अंग्रेजों ने यह शर्त मान ली। आपने अपनी रेजिमेंट की कमान बड़ी बहादुरी से की और इसके फलस्वरूप आपको ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इण्डिया की पदवी से विभूषित किया गया। इस पदवी के लिये आपको 450 रुपये मासिक वजीफा तीन पुश्तों के लिये और मुल्तान में जागीर भी दी गयी।
इस पदवी के साथ ही आपको ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में कमीशन दिया गया। 1946 में जम्मू एवं कश्मीर सेना के कमांडर इन चीफ बने और 1950 में इसी पद से रिटायर हुए। 1962 में चीनी हमले के समय रिटायर्मेंट के बावजूद भी आपने अपने देश के लिये सेवाएं दीं।
सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 404)
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