Thursday, January 31, 2013

Vir Chakra - Lieutenant Colonel Sh. Girdhari Singh Ji

ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी को डबल मिलिट्री वीरता पदक इटली की गारी नदी के मोर्चे के सफल नेतृत्व पर मिला। अंग्रेजी अफसरों ने आपको टाईगर ऑफ़ इटली व गारी नदी का टाईगर कहा। ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी जन्म जात सैनिक योद्धा थे। उन्होंने हमेशा साहस और सूझ बूझ से सैनिक मोर्चों पर विजय प्राप्त की। उन्हें गुरिल्ला रण शैली का सहज ज्ञान था। वे मौत से कभी नहीं डरते थे। जोखिम लेना उनका स्वभाव था। देहरादून की मिलिट्री अकैडमी में ऑफिसर्स को ट्रेनिंग देते समय ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी की रण शैली का पाठ पढ़ाया जाता है।
पदक जीतने की तारिख  26 फरवरी 1948
दिसंबर 1947 से मार्च 1948 तक ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी एक बटालियन को कमाण्ड कर रहे थे, जो कि छम्म सैक्टर में तैनात थी। शत्रु ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए कई बार हमले किये। यद्यपि उस दुर्गम स्थान पर हमारे उचित सुरक्षा साधन उपलब्ध नहीं थे, फिर भी आपने अपने कुशल नेतृत्व में बटालियन के जवानों को उत्साहित किया और बुद्धिमानी से योजना बनाकर शत्रु पर हमला किया और शत्रु को बुरी तरह परास्त किया।
26 फरवरी 1948 की रात को ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी ने स्वयं दो कंपनियों को लेकर शत्रु पर हमला किया। शत्रु सैनिकों पर भारी गोलीबारी की जिससे काफी तादात में दुश्मन के सैनिक हताहत हुए और शेष अपनी जान बचाकर रण क्षेत्र से भाग खड़े हुए। दुश्मनों के 30 मृत सैनिकों की लाश और बड़ी संख्या में घोड़े व खच्चर युद्ध भूमि में रह गए। इस बहादुर अफसर की उच्चकोटि की वीरता, दृढ निश्चय और कुशल नेतृत्व से खुश होकर भारत सरकार ने आपको वीर चक्र प्रदान किया।
अक्टूबर 1948 में आपकी बटालियन कश्मीर घाटी पहुंची। यहाँ जोजिला पहाड़ी पर पाकिस्तान के साथ घमासान युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में सक्रीय रूप से भाग लेने के लिये 77 पैरा ब्रिगेड की तरफ से आपकी बटालियन को आदेश मिला। जोजिला पहाड़ी (ऊँचाई 11370 फीट) जो कि हमेशा बर्फ से ढकी रहती है, बहुत ही दुर्गम पहाड़ी है और हमारी थल सेना की जो बटालियने उस सैक्टर में तैनात थीं, वे सभी उस दुर्गम पहाड़ी पर कब्ज़ा करने में असमर्थ रहीं। दुश्मन का जोर बराबर बढ़ता जा रहा था। ऐसी विषम परिस्थितियों में आपकी रण कौशलता को देखते हुए आपको आदेश मिला कि आप अपनी पलटन से उस अजेय पहाड़ी पर हमला करवाएं।
15-16 नवम्बर 1948 की रात को बर्फानी तेज़ हवाएँ और भयानक तूफान चल रहा था। भयंकर जाड़े की उस ठंडी रात में बाहर निकलने की कोई साधारण आदमी हिम्मत नहीं कर सकता। परन्तु आपने सभी जवानों का साहस बढ़ाकर उन्हें जोश दिलाया और बजरंग बलि की जय बोलकर उस काली अंधियारी भयानक ठंडी रात में उस दुर्गम पहाड़ी पर योजनाबद्ध तरीके से हमला बोल दिया। पहले आपने दरास (Dras) पर कब्ज़ा किया और फिर जोजिला की अगम पहाड़ी पर जाकर भारतीय सेना का झंडा गाड़ दिया। यह जीत केवल आपकी रण कौशलता एवं कुशल नेतृत्व के कारण ही संभव हो सकी। भारत सरकार ने वह दिन आपकी बटालियन को 'युद्ध सम्मान दिवस' के रूप में मनाने की अनुमति प्रदान की और आज भी यह बटालियन युद्ध सम्मान दिवस को 'जोजिला डे' के नाम से प्रतिवर्ष 15-16 नवम्बर को बड़े हर्षोल्हास के साथ मनाती है।
सेना से रिटायर होकर आप मरणपर्यंत मुख्य सुरक्षा अधिकारी रहे और हमारी गुर्जर बिरादरी की अखिल भारतीय गुर्जर सुधार सभा के सन 1965 से मरणपर्यंत निर्विवाद अध्यक्ष रहे। वे अनुशासन प्रिय, ईमानदार और सादगी पसंद नेता थे। गुर्जर समाज को उन पर सदैव गर्व है कि न केवल सेना में अपितु सेवानिवृत होने के पश्चात भी अपने समाज और राष्ट्र का गौरव बढाया। सन 1976 में उनका देहावसान हृदय गति रुक जाने से उनके कृषि फ़ार्म हाउस, नया गाँव (बल्लभगढ़) में हुआ था।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 408)

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