Saturday, February 16, 2013

President's Gallantry Award & Fire Brigade Medal - Sh. B.S.Tongar

अग्नि शमन पुरस्कार 
श्री बी. एस. टोंगर 

श्री बी.एस. टोंगर प्रमुख अधीक्षक पुलिस फायर ब्रिगेड तथा प्रमुख फायर विशेषज्ञ (म. प्र.) के पद पर कार्यरत हैं। श्री टोंगर, फायर इंजीनियरिंग में स्नातक होकर फायर साइंस में विशेष योग्यता रखते हैं। श्री टोंगर, ऑल इंडिया फायर एडवाइजर काउन्सिल, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के स्थायी सदस्य हैं। इसके अलावा चीफ हैड ऑफ़ फायर सर्विस असोसिएशन, ऑल इण्डिया फायर के महासचिव भी हैं।
श्री टोंगर को महामहिम राष्ट्रपति ने वर्ष 1993 में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पदक से विभूषित किया है। 15 अगस्त 1994 को श्री टोंगर को फायर ब्रिगेड की उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए 'अग्नि शमन पदक' प्रदान किया गया। इसके अलावा पुनः राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 1996 में राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित किया गया। 
श्री टोंगर ने फिन्लैंड एवं जर्मनी से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है। आपके निर्देशन में अग्नि से बचाव पर फिल्म प्रदर्शन भी हुआ है।

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji (page 422) 



Saturday, February 9, 2013

President's Police Medal Sh. Rajendra Singh Ghuraiya

श्री राजेंद्र सिंह घुरैया ( इंस्पेक्टर पुलिस मध्य प्रदेश )

आपका जन्म 17 अगस्त 1956 को ग्राम पारसेन, जिला ग्वालियर के कर्णधार श्री यशवंत सिंह घुरैया जी के घर हुआ। 
आपने भोपाल विश्वविद्यालय से 1978 में राजनीति विज्ञान में M.A. किया। 1979 में सब इंस्पेक्टर पुलिस अकेडमी सागर में आपकी प्रथम नियुक्ति हुई। 
ग्वालियर के विभिन्न थानों में डाकू विरोधी अभियान में अच्छे प्रदर्शन के लिए 2 जुलाई 1994 को राष्ट्रपति पुरस्कार से आपको सम्मानित किया गया। 

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji ( page 421 )

President's Police Medal Sh. V. K. Singh ( Senior I.P.S. )

श्री वी .के . सिंह (वरिष्ठ आई.पी.एस.)

आपका जन्म गाँव खेडी भनोता, नोएडा जिला गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश निवासी श्रीमान एस.एल. सिंह ( Retired A.C.P. Delhi Police ) के यहाँ सन 1961 में हुआ था।
आपने दिल्ली के प्रसिद्द कॉलेज सेंट स्टीफंस से MSc. की डिग्री ग्रहण की।
सन 1984 में आपका भारतीय पुलिस सेवा में चयन हुआ एवं आपकी प्रथम नियुक्ति पुलिस अधीक्षक ग्वालियर के पद पर हुई। तत्पश्चात सन 1988 में शिवपुरी, मध्य प्रदेश में पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त हुए। इसके पश्चात् दमोह, बस्तर, बैतूल व उज्जैन में पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत रहे। फिर D.I.G. बने और वर्तमान में I.G. के पद पर आसीन हैं। आपको सन 2000 में सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिला।
श्री वी.के. सिंह उन गिने चुने प्रतिभाशाली युवकों में से हैं जिनका अखिल भारतीय स्तर की सेवाओं में सीधा चयन हुआ है। हमें आप पर गर्व है।

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji ( page 421 )

President's Police Medal Sh. Rustam Singh Awana ( I.G. Police )

श्री रुस्तम सिंह अवाना ( आई.जी. पुलिस )

आपका जन्म 5 नवम्बर 1949 को गिरगाँव, मुरार, जिला ग्वालियर, मध्य प्रदेश में पिता स्व. श्री प्रीतम सिंह जी के कृषक परिवार में हुआ।
पिताजी की प्रेरणा से बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री रुस्तम सिंह जी ने 1969 में प्रथम श्रेंणी से बी.ए. किया तथा बाद में एम.ए. एल.एल.बी. की उपाधि ग्रहण की। आपका अध्ययन एम.एल. कॉलेज में एवं एल.एल.बी. ग्वालियर, मध्य प्रदेश से हुई।
आपका पुलिस सेवा में प्रथम चयन सन 1977 में हुआ। आप अपर पुलिस अधीक्षक रायपुर और दुर्ग में भी रहे। तदोपरान्त सन 1987 में पुलिस अधीक्षक, 1993 से दिसंबर 1995 तक पुलिस अधीक्षक इंदौर, दिसंबर 1995 से 1998 तक पुलिस अधीक्षक रायपुर रहे और वहां ही प्रोमोट होकर डी.आई.जी. हो गए। 2001 में आप आई.जी. के पद पर आसीन हुए।
आपकी तत्पर एवं सराहनीय पुलिस सेवा के लिए 15 अगस्त 1994 को राष्ट्रपति विशिष्ट पुलिस सेवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो राष्ट्र एवं समाज के लिए गर्व की बात है।

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji ( page 420 )

Wednesday, February 6, 2013

President's Police Medal For Gallantry Platoon Commander Sh. Ramakhtyar Singh ( Posthumously)

श्री राम अख्त्यार सिंह मावी 
राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार मरणोपरांत 
श्री राम अख्त्यार सिंह जैसे ही अठारह बरस के हुए, ग्वालियर आर्मी में भर्ती हो गए। द्वितीय विश्व युद्ध में ग्वालियर की फ़ोर्स इन्फेंटरी में इन्होंने बहुत नाम कमाया तथा हवलदार बना दिए गए। मध्य भारत की स्थापना के बाद ग्वालियर राज्य की फौज के जवान तथा अफ्सरान सशस्त्र पुलिस में सम्मिलित कर लिए गए। इस बल का नाम S.A.F. (Special Armed Force) रखा गया। श्री राम अख्त्यार सिंह इस प्रकार आर्मी से S.A.F.  में आ गए थे।
सन 1958 में श्री राम अख्त्यार सिंह को पदोन्नत कर प्लाटून कमान्डर बनाया गया। उन दिनों डाकुओं के सफाए के लिए चुने हुए जवानों और अफसरों का एक दल बनाया गया जिसे 'क्रेक कंपनी' नाम दिया गया। डाकू सरगना मान सिंह के सफाए में यह सशस्त्र बल गठित किया गया था। डाकू लाखन सिंह के गिरोह का अन्त करने का काम इसी कंपनी को सौंपा गया था। कर्नल शितोले इस बल के कमान्डेंट थे।
30 दिसंबर 1960 को डाकू लाखन सिंह का गिरोह ग्राम देवरा के बीहड़ में ठहरा हुआ था। क्रेक कंपनी ने डाकू लाखन सिंह के गिरोह को घेरना शुरू किया ही था कि मुठभेड़ शुरू हो गयी।
श्री राम अख्त्यार सिंह अग्रिम पंक्ति में अपनी पलाटून का नेतृत्व कर रहे थे। भीषण गोलीबारी की परवाह ना करते हुए श्री राम अख्त्यार सिंह ने डाकू लाखन सिंह का पीछा करना जारी रखा। आखिर उन्होंने दस्यु सरदार लाखन सिंह को धर दबोचा। लाखन सिंह ने रायफल की गोली दागी जो श्री राम अख्त्यार सिंह के सीने में लगी।श्री राम अख्त्यार सिंह ने घायल होने के बावजूद अपनी रायफल से अचूक निशाना लगा कर लाखन सिंह को ढेर कर दिया। श्री राम अख्त्यार सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए। अदम्य और उत्कृष्ट वीरता के लिए श्री राम अख्त्यार सिंह को मरणोपरांत राष्ट्रपति के वीरता पदक से सम्मानित किया गया।

 It is mentioned in 'The History of the M.P. Police', page 371:
"Platoon Commander Ramakhtyar Singh was posthumously awarded the President's Police & Fire Service Medal for gallantry. His name will ever be remembered as that of a man who gave his life for the sake of destroying the most dangerous criminal of Madhya Pradesh, Lakhan Singh. In years to come, men will find inspiration in the exploits of the police officer, who with supreme courage led his men for war and in doing so took the reputation and prestige of the police forward for ever."

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji (page419)



President's Police Medal Sh. Chhittar Mal Ji Gurjar

श्री छित्तर मल जी गुर्जर (आर आई)

 श्री छित्तर मल जी गुर्जर का जन्म 13 अगस्त 1945 को ग्राम गौना का सर, तहसील शाहपुरा, जिला जयपुर राजस्थान के एक गुर्जर परिवार में श्री कान्हा राम जी खलवा के घर हुआ था। सातवीं कक्षा पास करने के बाद 1965 में आप राजस्थान पुलिस में सिपाही भर्ती हुए। सर्विस में रहते हुए आपने 1981 में दसवीं कक्षा पास की। सिपाही से प्रमोशन प्राप्त करते हुए आप आर.पी.आई. के पद पर आसीन हुए। आर.पी.आई. के इस पद पर रहते हुए जयपुर पुलिस लाईन शहर, जयपुर पुलिस लाईन ग्रामीण क्षेत्र और पुलिस लाईन टोंक राजस्थान में पदस्थ रहे।
आपकी महत्वपूर्ण पुलिस सेवाओं के लिए 1992 में आपको राष्ट्रपति पदक से विभूषित किया गया। आप सामाजिक उत्थान के लिए भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं।

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihas' By Ch. Khurshid Bhati Ji (page 419)

Tuesday, February 5, 2013

President's Police Medal Sh Masood Chaudhary (Senior I.P.S.)

श्री मसूद चौधरी (वरिष्ठ आई.पी.एस.)

श्री मसूद चौधरी 'बजाड़' गोत्र के गुर्जरों के एक मध्यम वर्ग घराने के सुपुत्र हैं। यह घराना पुंछ जिले की मेंढर तहसील के गाँव काला बन में निवास करता है। उनके पिता श्रीमान बाबू फैज़ मुहम्मद जी शिक्षा विभाग से सम्बंधित थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में शिक्षा के पिछड़ेपन को दूर करने का भरसक प्रयत्न किया। उन्होंने अपने पुत्र मसूद की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया। इसी कारण वश चौधरी साहब, अलीगढ विश्व विद्यालय से कानून की डिग्री लेने में सफल रहे। आप प्रारम्भ से ही सांस्कृतिक और साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लेते रहे। आपको कॉलेज मैगज़ीन के सम्पादकीय मंडल में सदस्य भी बनाया गया।
जम्मू कश्मीर के पुलिस विभाग में चौधरी साहब की नियुक्ति D.S.P. के पद पर 1967 में हुई। शीघ्र ही आपको S.P. बनाया गया और आप पुंछ एवं कठुआ जनपदों के S.P. रहे। ऊधमपुर में चौधरी साहब S.S.P. के पद पर आसीन रहे। जब चौधरी साहब का स्थानांतरण सतर्कता विभाग में S.S.P. के पद पर हुआ तो फिर आपको इसी विभाग में D.I.G. भी बनाया गया। फिर जम्मू का D.I.G. बनाया गया। इसके बाद पुलिस प्रबंधक के रूप में सम्पूर्ण राज्य का D.I.G. (Administration) बनाया गया।
शिक्षा और संस्कृति में विशेष रूचि रखने के कारण चौधरी साहब को शेर-ऐ-कश्मीर पुलिस अकेडमी ऊधमपुर का निर्देशक नियुक्त किया गया। इसी बीच राज्य मंत्रिमंडल की गत बैठक में श्री मसूद चौधरी साहब की राज्य के प्रति सेवा को पूर्ण स्वीक्रति देते हुए उन्हें I G Police के पद पर उन्नति दी गयी।
पुलिस विभाग के लम्बे सेवा काल में उन्हें कई सम्मान भी मिले हैं। 1984 में उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक और विशिष्ट सेवाओं के लिए 1995 में राष्ट्रपति का सम्मान उल्लेखनीय है।

Courtesy: 'Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas' By Ch. Khurshid Bhati Ji (page 418)


Monday, February 4, 2013

President's Police Medal Sh. Yashwant Singh Ghuraiya

राष्ट्रपति पुरस्कार - श्री यशवंत सिंह घुरैया (I.P.S. Retired)

श्री यशवंत सिंह घुरैया ने 4 बार राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर देश और समाज में अपने व्यक्तित्व का कीर्तिमान स्थापित किया है। आप बहुत बड़े समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ और उत्कर्ष्ठ साहित्यकार भी थे।
श्री यशवंत सिंह घुरैया के जीवन वृत को प्रारम्भ करने से पहले यह बात दुहरानी आवश्यक है कि महान पुरुषों का उद्भव कंटकाकीर्ण और दुर्गम विभीषिकाओं में होता है। यह एक यथार्थ सत्य है। इतिहास में ऐसे उदाहरण ढूँढने से ही मिलेंगे, जिन्हें महानता पैत्रिक रूप से मिली हो। किसी ने सोचा भी ना होगा कि क़स्बा पारसेन, ग्वालियर में जन्म लेकर मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे भारत के पुलिस अधिकारियों में वह उच्च कोटि की प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा। न्रवंश विज्ञान के विशारदों का मत है कि रक्त बोलता है, उसकी ध्वनि कालान्तर में सब सुन समझ सकते हैं। श्री यशवंत सिंह घुरैया की धमनियों में पराकर्मी राजा रामपाल सिंह का रक्त प्रवाहित है, जिसकी धाक से मुगलिया सल्तनत के सपने खटाई में पड़ गए थे। मराठा हुकूमत के लिए भी करील के कांटे की तरह दर्द बना रहा। करौली तथा जयपुर के राजाओं को उनसे सुलह करनी पड़ी।
श्री यशवंत सिंह घुरैया सन 1953 में सब इंस्पैक्टर पुलिस निर्वाचित हुए। पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज इंदौर से सफलता पूर्वक प्रशिक्षण पूरा करके जिला राजगढ़, मध्य प्रदेश में नियुक्त किये गए। तत्कालीन डी.आई.जी. श्री पुत्तू सिंह चौहान इनकी कार्य कुशलता से बहुत प्रभावित हुए। सन 1955 में इनकी नियुक्ति जिला भिंड के थाना गोरमी में की गयी। उस समय थाना गोरमी सर्कल में कई डकैत गिरोह प्रभावशाली थे। कल्ला उर्फ़ कल्याण सिंह, पहाड़ सिंह, महाराज सिंह तथा गब्बर सिंह के नाम विशेष कुख्यात थे। थाना गोरमी के 9 माह के कार्यकाल में 12 बार डकैतों से मुठभेड़ें हुईं जो इस थाने के इतिहास में सबसे अधिक मुठभेड़ें थीं। 
सन 1955 से 1962 तक जिला भिंड के महत्वपूर्ण थानों के थाना प्रभारी रह कर अत्यंत ईमानदारी तथा सत्यनिष्ठा की मिसाल पुलिस में प्रस्थापित की। कम समय में जनता एवं अधिकारियों के लोकप्रिय बनकर जनता जनार्दन की निस्वार्थ सेवा की। सन 1962 में पदोन्नत होकर सूबेदार नियुक्त हुए तथा सूबेदार कोर्स जबलपुर में आलराउण्ड बैस्ट घोषित किये गए। प्रशिक्षण उपरान्त जिला मुरैना के दस्यु अभियान में उपयुक्त समझ कर नियुक्त किये गए। जिला मुरैना में डाकू समस्या हल करने में श्री यशवंत सिंह घुरैया जी ने सराहनीय योगदान दिया है।
श्री यशवंत सिंह घुरैया 26 जनवरी 1967 में राष्ट्रपति द्वारा वीरता के पुलिस पदक से अलंकृत, 26 जनवरी 1971 में गुणोंत्क्रष्ट सेवा पदक से विभूषित, 1978-79 में सर्वोच्च अलंक्रण विशिष्ट सेवा पदक से अलंकृत और 1981 में चौथी बार अपनी अद्भुत बहादुरी के कारनामों के लिए शौर्य पदक से विभूषित हुए। इस तरह एक उच्च कोटि के समाज रतन ने बहादुरी में ऐसी मिसाल कायम की जो आजतक के इतिहास में अद्भुत है।
श्री यशवंत सिंह घुरैया पुलिस अधीक्षक के पद से 31 मार्च 1991 में रिटायर हुए। आप एक उच्च कोटि के समाज सुधारक, साहित्यकार और इतिहासकार थे। पुलिस विभाग की सेवा का भिंड जिले में पुलिस अधीक्षक के रूप में उनका कार्यकाल आज भी स्मरण किया जाता है।

Courtesy: Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas By Ch. Khurshid Bhati Ji (page 416)

Sunday, February 3, 2013

First Ashok Chakra (class 1) for Civilians

अशोक चक्र प्रथम श्रेणी (मरणोपरांत) 
श्री तेज सिंह गुर्जर (कोली), श्री पुरुषोत्तम सिंह गुर्जर एवं श्री लज्जा राम गुर्जर (कांवर)

12 सितम्बर 1964 की रात। ग्वालियर से 21 मील दूर चुरहेला गाँव को डकैतों के सशस्त्र गिरोह ने घेर लिया। यह 35-40 घरों वाला गुर्जरों का गाँव है। डाकू दल मार्क थ्री रायफलों तथा तलवारों से लैस थे। इन्होने आधी रात के सन्नाटे में श्री नोहन्त राम सिंह गुर्जर के घर में दिवार लांघ कर प्रवेश किया तथा महिलाओं के जेवर लूटना शुरू कर दिया। घर के बाहर चौपाल में श्री नोहन्त राम सिंह तथा उनके दो पुत्र श्री पुरुषोत्तम सिंह और श्री लज्जाराम सिंह और उनके दामाद श्री तेजसिंह (बमरौली निवासी) गहरी नींद में सोये हुए थे।
महिलाओं के चीत्कार को सुनकर उनकी नींद उड़ गयी। तेजसिंह ने लाठी उठायी और डाकुओं पर बाज़ की तरह झपट पड़े। तीनों ने सीने पर गोलियाँ झेलकर डकैतों को खदेड़ दिया। बूढ़े बीमार श्री नोहन्त राम सिंह गुर्जर के दोनों जवान पुत्रों तथा जवान दामाद ने जिस अदम्य साहस तथा वीरता का परिचय दिया वह अनुपम एवं अकथनीय है। आज भी इस इलाके में मिसाल दी जाती है कि:
मौत     मरै     तो     ऐसी 
नोहन्तराम के पूतों जैसी।
26 जनवरी 1965 को तीनों वीर गुर्जरों को मरणोपरांत अशोक चक्र प्रथम श्रेणी से विभूषित किया गया। उनकी विधवाओं ने दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड समारोह में पदक प्राप्त किये। उनके नाम हैं:
1. श्रीमती लालीबाई पत्नी स्व. तेजसिंह कोली ग्राम बमरौली, जिला मुरैना (म.प्र.)
2. श्रीमती सोनाबाई पत्नी स्व. लज्जाराम सिंह ग्राम चुरहेला, जिला मुरैना (म.प्र.)
3. श्रीमती बसंतीबाई पत्नी स्व. पुरुषोत्तम सिंह ग्राम चुरहेला, जिला मुरैना (म.प्र.)

22 जनवरी 1965 के अपने अंक में दैनिक 'हिंदुस्तान टाईम्स' ने लिखा था-
 First Ashok Chakra For The Civilians
Three women of Chambal, Churhela Village in Madhya Pradesh will receive on Republic Day the Ashok Chakra Class 1, awarded to their husbands. The villagers are Purushottam Singh, Lajjaram Singh and Tej Singh. "Our men faced the dacoits with unsurpassed bravery with lathies, they fought the armed dacoits for more than half an hour," Sona, one of the widow said proudly. 

Courtesy: Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas By Ch. Khurshid Bhati Ji (page415)

Ashok Chakra Ch. Gulamddin Gurjar

अशोक चक्र 
चौ. गुलामद्दीन गुर्जर जी 

चौ. गुलामद्दीन गुर्जर जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले के डिगवार गाँव के निवासी थे। उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल कर देशभक्ति का कर्तव्य निभाया। उनकी इस साहसपूर्ण देशभक्ति के फलस्वरूप उन्हें 1966 में अशोक चक्र प्रदान किया गया।
1965 में चौ. गुलामद्दीन गुर्जर ने सही समय पर भारतीय सेना को पाकिस्तानी फौज के घुस आने की सूचना दी। इस प्रकार पुंछ के बिजलीघर को अपने साहसिक प्रयत्नों से दुश्मन द्वारा नष्ट होने से बचा लिया। अगर चौ. गुलामद्दीन गुर्जर पाकिस्तानी फौज द्वारा बिजलीघर को उड़ा देने की सूचना सही समय पर भारतीय सेना तक नहीं पहुंचाते तो इसके भयंकर दुष्परिणाम होते। 
चौ. गुलामद्दीन गुर्जर जी ने अपनी अपूर्व देशभक्ति और सूझ-बूझ द्वारा गुर्जर समाज की परम्परागत देशभक्ति का आदर्श उपस्थित किया। उनके इस महान कार्य के लिये भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राधा कृष्णन ने अप्रैल 1966 में उन्हें एक विशेष समारोह में अशोक चक्र से सम्मानित किया।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 414)

Ashok Chakra Lieutenant colonel D.C.S. Pratap (retd.)

अशोक चक्र 
लेफ्टिनेंट कर्नल डी.सी.एस. प्रताप (रिटायर्ड)

श्री लेफ्टिनेंट कर्नल डाल चंद सिंह प्रताप का जन्म पीलवान गोत्र के गुर्जर परिवार में लालपुर गाँव, मेरठ, उत्तर प्रदेश के श्री लखपत सिंह जी के यहाँ 4 जुलाई 1925 को हुआ। मेरठ कॉलेज, मेरठ से आपने शिक्षा प्राप्त की। खेलकूद का शौक प्रारम्भ से ही था। सीधे सैनिक अफसर चुने जाने पर उन्होंने डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज से 1955-1956 में शिक्षा प्राप्त की। आपको 19 नवम्बर 1944 को कमीशन मिला था। 5 मई 1957 में नागा हिल पर मुठभेड़ में साहस प्रदर्शित करते हुए घायल हुए। 9 अप्रैल 1959 में राष्ट्रपति द्वारा अशोक चक्र दिया गया।
श्री लेफ्टिनेंट कर्नल डाल चंद सिंह प्रताप अशोक चक्र प्राप्त करने वाले पहले गुर्जर थे। सदा से जीवन में आशा, उत्साह, और साहस का अपूर्व सामंजस्य स्थापित करते हुए आपने वीरता की जो मिसाल कायम की वह देश भर के गुर्जरों के लिए गौरवपूर्ण है।
9 अप्रैल 1959 को सांय काल 4 बजे दरबार हाल अलंकरण समारोह, राष्ट्रपति भवन में श्री लेफ्टिनेंट कर्नल डाल चंद सिंह प्रताप, 5 गोरखा राईफल्स को राष्ट्रपति द्वारा सेना का महत्वपूर्ण सबसे बड़ा पदक - अशोक चक्र (द्वितीय श्रेणी) दिया गया। इस अवसर पर निम्न वाचन पढ़ा गया-

25 मई 1957 को नाग़ा पहाड़ियों के चिशिलिमी चेशोलिमी क्षेत्र में 5 गोरखा राईफल्स, मेजर डाल चंद सिंह प्रताप की कमान में संक्रिया में लगी हुई थी। इस कंपनी का करीब 100 उपद्रवियों से मुकाबला हुआ जो मशीनगनों और टौमी तथा स्टेन गनों और राईफल्स से सुसज्जित थे। रास्ते में पास ही ऊपर उठी हुई जमीन में वे लोग अच्छी तरह छिपे हुए थे और उन्होंने 20 गज के फासले से फायर करना शुरू किया। हल्की मशीनगन का एक विस्फोट मेजर प्रताप की दाहिनी जाँघ में लगा। आपने घावों की प्रवाह ना करते हुए हमला किया और उपद्रवी गनमैन को मार गिराया। ठीक उसी समय दूसरी हल्की मशीनगन से मेजर प्रताप पर बायीं ओर से फायर आरम्भ हुआ जो उनसे 30 गज के फासले पर थी। इस फायर से उनके चेहरे और सीने पर गोली लगी जिससे वे बुरी तरह घायल होकर गिर पड़े। 
यद्यपि मेजर प्रताप इस प्रकार घायल हो चुके थे फिर भी उन्होंने अपनी पिछली प्लाटून को आदेश दिया कि वह एक तरफ से उपद्रवियों पर हमला करें। उनकी कंपनी ने उनकी वीरता और साहस से प्रेरणा लेते हुए इतने विश्वास के साथ उपद्रवियों पर हमला किया कि वे पीछे हटने पर मजबूर हुए। कंपनी के दो सिपाही हताहत हुए जिनमे से एक मेजर प्रताप स्वयं थे, जबकि कंपनी ने 10 उपद्रवियों को हताहत किया। 
मेजर प्रताप का वीरतापूर्ण नेतृत्व और व्यक्तिगत साहस उनके जवानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बना।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 413)

Saturday, February 2, 2013

Vir Chakra Shaheed Captain Madan Pal Chauhan

अमर शहीद कैप्टन मदन पाल चौहान गाँव जसाला (दिसाला) तहसील बुढ़ाना जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश चौहान गुर्जर परिवार के 27 वर्षीय युवक, शकरगढ़ के मोर्चे पर दुश्मन के 40 टैंक नष्ट करने के बाद आगे बढे तो पाकिस्तानी सेना के 4 टैंकों और विमान भेदी तोपों से खुद को बचा नहीं सके। इस हमले में विमान की खिड़की के सामने से गोली लगने के कारण 16 दिसंबर 1971 को शहीद होकर वीरगति को प्राप्त हुए।
अमर शहीद कैप्टन मदन पाल चौहान जी का जन्म 1944 में हुआ। आपके पिता श्री रहतू सिंह जी शिक्षा प्रेमी व्यक्ति थे। आगरा विश्वविद्यालय से आपने BSc. पास किया। 1963 में आर्टिलरी में सीधे सीनियर कमीशन प्राप्त कर सेकिण्ड लेफ्टिनेंट बने। 1968 में वायु सेना एयर ओ.पी. में आ गए। हौंसले और अरमान ऊँचे थे। 1970 में कैप्टन बने। सन 1971 में शकरगढ़ मोर्चे पर भारत पाक युद्ध में अपूर्व वीरता और शौर्य प्रदर्शित करते हुए डबल ड्यूटी हवाबाजी करके पाकिस्तान के 40 टैंक नष्ट करने का श्रेय प्राप्त करने के बाद 16 दिसंबर 1971 को वीर गति को प्राप्त हुए।
अमर शहीद कैप्टन मदन पाल चौहान को अपूर्व वीरता और शौर्य प्रदर्शित करने के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति द्वारा वीर चक्र प्रदान किया गया और वायुसेना का एक्सग्रेसिया एवार्ड 42 हज़ार रुपये का दिया गया।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 412)

Vir Chakra Second Lieutenant Bharat Singh Kasana

सैकिंड लेफ्टिनेंट भरत सिंह कसाना जी का जन्म 5 अगस्त 1949 को श्री खड़क सिंह कसाना जी के घर गाँव जावली, जिला गाजियाबाद (उ.प्र.)  में हुआ। आपका कमीशन 14 मार्च 1971 को हुआ और आपको 4 दिसंबर 1971 के दिन पुरस्कृत किया गया।
सैकिंड लेफ्टिनेंट भरत सिंह कसाना डोगरा रेजिमेंट की एक प्लाटून के कमान्डर थे, जिन्हें पूर्वी क्षेत्र के मदुरबेरे  पर अधिकार करना था। अत्याधिक आधुनिक मशीनों की धुंआधार गोलाबारी के कारण उनकी प्लाटून आगे बढ़ने से रुक गयी। सैकिंड लेफ्टिनेंट भरत सिंह कसाना जी ने अपनी प्लाटून को एकत्रित किया और स्वचालित हथियारों और तोपों की गोलाबारी के मध्य से गुजरते हुए दुश्मन के खंदकों पर आक्रमण किया।
इस दौरान पैर में गोली लगने से घायल होने पर भी उन्होंने आक्रमण जारी रखा। गोलियों से उनका सिर भी छलनी हो गया था, लेकिन तब तक वे दुश्मनों की खंदकों पर अधिकार कर चुके थे।
इस कार्य में सैकिंड लेफ्टिनेंट भरत सिंह कसाना जी ने अद्भुत वीरता, उच्च श्रेणी के नेतृत्व और दृढ निश्चय का परिचय दिया।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास। लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी ( page 411)

Brothers Make History

दो सगे भाई जिन्होंने एक साथ वीर चक्र प्राप्त कर इतिहास रचा..!!

1971 के हिन्द-पाक युद्ध में वायु सेना में दो सगे भाई विंग कमान्डर चरणजीत सिंह और स्क्वार्डन लीडर जसजीत सिंह ने अपने अदम्य साहस और वीरता प्रदर्शन से एक साथ वीर चक्र प्राप्त किया। देश में इसके पहले एवं इसके बाद अब तक ऐसे इतिहास की मिसाल नहीं मिलती। 
ये दोनों सगे भाई इसी युद्ध (1971) में महावीर चक्र प्राप्त करने वाले 'बॉर्डर' फिल्म के केन्द्रीय पात्र ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के कुटुंब से हैं और गुर्जर समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति स्व. सरदार साहब सादार संत सिंह मीलू के सुपुत्र हैं। तत्कालीन अखबारों के लिए यह इतिहास रचना मुख्य खबर थी। डेली न्यूज दी हिन्दुस्तान टाईम्स के मुख्य प्रष्ठ पर इसका विवरण इस तरह से मिलता है:

Brothers Make History

In the annals of the Indian Armed Forces fighter pilots, Wing Commander Charanjit Singh and Squadron Leader Jasjit Singh have created a new chapter. This is the first time that two brothers have simultaneously been awarded the Vir Chakra for conspicuous acts of gallantry in the Dec.71 war.
The two brothers, however shrug it off as part of the game, "we come from a fighting family, we even fight among ourselves"
This is not the first time that Wg. Commander Charanjit Singh, the elder of the two brothers, has won an award for gallantry. He was decorated in 1965 for deep penetration into enemy territory. In 1971 he received the Vishisht Seva Medal (VSM) for distinguished service. He also fought in Congo war in 1961.
In the last war, Wg. Commander Charanjit Singh made at least 20 sorties in both the eastern and the western sectors and has been awarded the Vir Chakra during several successful missions.
Squadron Leader Jasjit Singh, who has received the Vir Chakra for destroying a number of tanks, guns and bunkers, admits that he is still trying to catch up with his brother 'who has fought more wars and is more decorated.' Squadron Leader Jasjit Singh, who was involved in the western sector in the ground attack fighter squadron led a number of sorties in the thick of the battle.
His wife, who is a doctor in the Air Force, also contributed in her way by tending the wounded soldiers in the hospitals.

Courtesy: Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas By Ch. Khurshid Bhati Ji (page 410)

Thursday, January 31, 2013

Vir Chakra - Lieutenant Colonel Sh. Girdhari Singh Ji

ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी को डबल मिलिट्री वीरता पदक इटली की गारी नदी के मोर्चे के सफल नेतृत्व पर मिला। अंग्रेजी अफसरों ने आपको टाईगर ऑफ़ इटली व गारी नदी का टाईगर कहा। ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी जन्म जात सैनिक योद्धा थे। उन्होंने हमेशा साहस और सूझ बूझ से सैनिक मोर्चों पर विजय प्राप्त की। उन्हें गुरिल्ला रण शैली का सहज ज्ञान था। वे मौत से कभी नहीं डरते थे। जोखिम लेना उनका स्वभाव था। देहरादून की मिलिट्री अकैडमी में ऑफिसर्स को ट्रेनिंग देते समय ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी की रण शैली का पाठ पढ़ाया जाता है।
पदक जीतने की तारिख  26 फरवरी 1948
दिसंबर 1947 से मार्च 1948 तक ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी एक बटालियन को कमाण्ड कर रहे थे, जो कि छम्म सैक्टर में तैनात थी। शत्रु ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए कई बार हमले किये। यद्यपि उस दुर्गम स्थान पर हमारे उचित सुरक्षा साधन उपलब्ध नहीं थे, फिर भी आपने अपने कुशल नेतृत्व में बटालियन के जवानों को उत्साहित किया और बुद्धिमानी से योजना बनाकर शत्रु पर हमला किया और शत्रु को बुरी तरह परास्त किया।
26 फरवरी 1948 की रात को ले. कर्नल गिरधारी सिंह जी ने स्वयं दो कंपनियों को लेकर शत्रु पर हमला किया। शत्रु सैनिकों पर भारी गोलीबारी की जिससे काफी तादात में दुश्मन के सैनिक हताहत हुए और शेष अपनी जान बचाकर रण क्षेत्र से भाग खड़े हुए। दुश्मनों के 30 मृत सैनिकों की लाश और बड़ी संख्या में घोड़े व खच्चर युद्ध भूमि में रह गए। इस बहादुर अफसर की उच्चकोटि की वीरता, दृढ निश्चय और कुशल नेतृत्व से खुश होकर भारत सरकार ने आपको वीर चक्र प्रदान किया।
अक्टूबर 1948 में आपकी बटालियन कश्मीर घाटी पहुंची। यहाँ जोजिला पहाड़ी पर पाकिस्तान के साथ घमासान युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में सक्रीय रूप से भाग लेने के लिये 77 पैरा ब्रिगेड की तरफ से आपकी बटालियन को आदेश मिला। जोजिला पहाड़ी (ऊँचाई 11370 फीट) जो कि हमेशा बर्फ से ढकी रहती है, बहुत ही दुर्गम पहाड़ी है और हमारी थल सेना की जो बटालियने उस सैक्टर में तैनात थीं, वे सभी उस दुर्गम पहाड़ी पर कब्ज़ा करने में असमर्थ रहीं। दुश्मन का जोर बराबर बढ़ता जा रहा था। ऐसी विषम परिस्थितियों में आपकी रण कौशलता को देखते हुए आपको आदेश मिला कि आप अपनी पलटन से उस अजेय पहाड़ी पर हमला करवाएं।
15-16 नवम्बर 1948 की रात को बर्फानी तेज़ हवाएँ और भयानक तूफान चल रहा था। भयंकर जाड़े की उस ठंडी रात में बाहर निकलने की कोई साधारण आदमी हिम्मत नहीं कर सकता। परन्तु आपने सभी जवानों का साहस बढ़ाकर उन्हें जोश दिलाया और बजरंग बलि की जय बोलकर उस काली अंधियारी भयानक ठंडी रात में उस दुर्गम पहाड़ी पर योजनाबद्ध तरीके से हमला बोल दिया। पहले आपने दरास (Dras) पर कब्ज़ा किया और फिर जोजिला की अगम पहाड़ी पर जाकर भारतीय सेना का झंडा गाड़ दिया। यह जीत केवल आपकी रण कौशलता एवं कुशल नेतृत्व के कारण ही संभव हो सकी। भारत सरकार ने वह दिन आपकी बटालियन को 'युद्ध सम्मान दिवस' के रूप में मनाने की अनुमति प्रदान की और आज भी यह बटालियन युद्ध सम्मान दिवस को 'जोजिला डे' के नाम से प्रतिवर्ष 15-16 नवम्बर को बड़े हर्षोल्हास के साथ मनाती है।
सेना से रिटायर होकर आप मरणपर्यंत मुख्य सुरक्षा अधिकारी रहे और हमारी गुर्जर बिरादरी की अखिल भारतीय गुर्जर सुधार सभा के सन 1965 से मरणपर्यंत निर्विवाद अध्यक्ष रहे। वे अनुशासन प्रिय, ईमानदार और सादगी पसंद नेता थे। गुर्जर समाज को उन पर सदैव गर्व है कि न केवल सेना में अपितु सेवानिवृत होने के पश्चात भी अपने समाज और राष्ट्र का गौरव बढाया। सन 1976 में उनका देहावसान हृदय गति रुक जाने से उनके कृषि फ़ार्म हाउस, नया गाँव (बल्लभगढ़) में हुआ था।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 408)

Wednesday, January 30, 2013

ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इण्डिया (O B I) ब्रिगेडियर चौ. ख़ुदा बक्श खारी

आप जम्मू और कश्मीर के खारी गोत्र के गुर्जर थे। आपके पिता का नाम चौ. गौस बक्श था। आपने 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स कॉलेज जम्मू से स्नातक की डिग्री ली। तत्पश्चात 1922 में जम्मू और कश्मीर फौज में सैकिण्ड लेफ्टिनेंट से भर्ती हुए। 1937 में आप कर्नल बने और द्वितीय विश्व युद्ध पर जाने से पहले 1939 में आपने सैकिण्ड जे.के.राइफल्स की कमान सम्भाली।
रियासती फौज की उस रेजिमेंट को अंग्रेज हुकूमत ने मोर्चे पर भेजने के लिये माँगा तो महाराजा हरि सिंह ने इस शर्त पर यह रेजिमेंट भेजी कि उसकी कमान मेरा अफसर ब्रिगेडियर चौ. ख़ुदा बक्श ही करेगा। अंग्रेजों ने यह शर्त मान ली। आपने अपनी रेजिमेंट की कमान बड़ी बहादुरी से की और इसके फलस्वरूप आपको ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इण्डिया की पदवी से विभूषित किया गया। इस पदवी के लिये आपको 450 रुपये मासिक वजीफा तीन पुश्तों के लिये और मुल्तान में जागीर भी दी गयी।
इस पदवी के साथ ही आपको ब्रिटिश इण्डिया आर्मी में कमीशन दिया गया। 1946 में जम्मू एवं कश्मीर सेना के कमांडर इन चीफ बने और 1950 में इसी पद से रिटायर हुए। 1962 में चीनी हमले के समय रिटायर्मेंट के बावजूद भी आपने अपने देश के लिये सेवाएं दीं।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 404)

Tuesday, January 29, 2013

ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया (O B I) सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन भैरों सिंह खटाना (1868---1928)

सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन भैरों सिंह खटाना का जन्म सन 1868 में ग्राम खेड़ली कैमरी, तहसील नादौती जिला करौली राजस्थान के श्री हरगोविंद सिंह खटाना के परिवार में हुआ।
आपने फौजी प्रशिक्षण लाहौर में लिया तद्पश्चात सैकिंड बटेलियन फ्रंटियर फ़ोर्स में भर्ती हुए। सन 1930 में कैप्टन भैरों सिंह खटाना 4 नायक 18 जवानों के साथ सोमालिलैंड में एक माउन्टेन घुड़सवार इन्फेंटरी का हिस्सा बन कर गए तथा 19 दिसंबर 1903 को जिन्दबली की लड़ाई में सिपाही धन्नाराम गुर्जर को गिरते हुए और बहुत कठिनाइयों में फंसा हुआ देखा तो भैरों सिंह अकेले ही वापस मुड़े और दुश्मन के घुड़सवार दस्तों को चीरते हुए, भारी गोलीबारी की परवाह न करते हुए सिपाही धन्नाराम को अपने घोड़े पर लाद कर युद्ध के मैदान से बाहर निकाल लाये। उसके बाद वापस जाकर दुश्मन दस्ते का सफाया कर दिया।
इनकी इस बहादुरी के लिये इन्डियन ऑर्डर ऑफ़ मेरिट (O I M) मैडल दिया गया। बाद में इसी लड़ाई के दौरान और अधिक शूरवीरता दिखाने के कारण श्री भैरों सिंह खटाना को ऑर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया (O B I) पदक से विभूषित किया गया।
इस बहादुरी के लिए अंग्रेज़ सम्राट ने श्री भैरों सिंह खटाना से जब उनकी उत्कंठ इच्छा पूछी तो युद्धपुरोधा श्री खटाना ने गुर्जरों को सेना में भर्ती कराने के लिये सम्राट से इजाजत पायी। प्रसन्न सम्राट ने गुर्जरों के लिये सेना में 40 प्रतिशत भर्ती के आदेश कर दिए। इस महान शूरवीर को अपनी बहादुरी, कौशल और कर्तव्य  परायणता के फलस्वरूप उनकी तीन पीढ़ियों को लगातार पैंशन मिलती रही। जयपुर महाराज ने श्री खटाना को 'राजस्थान-केसरी' की उपाधि देकर विभूषित किया तथा 100 रुपये प्रतिमाह पुरस्कार स्वरूप पैंशन जीवित रहने तक भेजते रहे। 
ऐसे वीर की अमरगाथायें ही हमारी प्रेरणा का स्त्रोत हैं। आज आपके परिवार में से 4 पौत्र और 6 प्रपौत्र भारतीय सेना में विभिन्न रेजिमेंट में भर्ती होकर राष्ट्र सेवा में अपनी अहम् भूमिका निभा रहे हैं।

सौजन्य: गुर्जरों का सम्पूर्ण इतिहास, लेखक चौ. खुर्शीद भाटी जी (page 402)

Monday, January 28, 2013

Gurjar Avatars, Auliyas, Gurus & Sufi Saints

GURJARS IN HINDU DHARM:

1. Ved Mata Gayatri Devi
2. Bhagwan Sh. Devnarayan Ji
3. Bhagwan Sh. Kaaras Dev Ji
4. Sh.Sh.1008 Shri Baba Ramratan Das Ji Maharaj Karah Wale
5. Mahant Jagannath Das Ji Maharaj
6. Sant Pyare Ji Maharaj
7. Mahant Jagannath Das Ji Karmyogi
8. Pujya Paad Sh. Ram Ji Baba
9. Sant Budh Giri Ji
10. Mahatma Hardev Puri Ji
11. Swamy Atmanand Maharaj Ji
12. Swamy Achla Nand Gorsi Ji
13. Mahamahim Sh.Jodhadas Ji Swamy
14. Sh. Samarth Govind Maharaj Ji
15. Swamy Varun Vesh Ji
16. Sh. Shri 108 Chechi Maharaj Ji
17. Swamy Karuna Nand Ji
18. Mahashya Harbansh Singh Sarvodayi
19. Swamy Narayan Das Ji Maharaj
20. Sant Brahmanand Ji Bhoori Wale
21. Sh. Nirmal Das Ji Chela Sh.Raghav Das Ji
22. Sh. Kranti Das Ji
23. Sh. Ram Ji Baba
24. Bibi Kirpi Radha Swamy
25. Mahatma Sevanand Ji Maharaj
26. Sant Bhola Ram Ji Maharaj
27. Swamy Aranya Muni Ji
28. Sant Ramsharan Das Ji
29. Mahatma Abhiramdas Ji Vedantacharya
30. Paramhans Swamy Narayan Ji Saraswati
31. Sant Kevaldas Ji
32. Bhakt Jeeta Patel
33. Sant Madhodas Ji
34. Sant Sh. Jagannath Ji Kasana
35. Swamy Jayprakash Das Ji Ramayani
36. Sh. Snehi Bhakt Ji
37. Sh. Shri 108 Mahant Hiralal Ji Chauhan
38. Swamy Brahamdas Ji
39. Paramhans Sant Bukhardas Ji Maharaj
40. Sant Narayandas Ji
41. Sh. Bhoura (bahora) Bhakt
42. Sh. Shri 108 Shri Ramdas Ji Maharaj
43. Siddh Baba Mohakam Das Ji Maharaj
44. Shri Thadeshwar Ji Maharaj
45. Shri Ganesh Nath Ji
46. Sh. Bhola Nath Ji
47. Swamy Nardanand Ji
48. Sant Prabhat Giri Ji
49. Sant Suraj Giri Ji
50. Swamy Madhodas Ji Maharaj
51. Mahant Premdas Ji
52. Mahant Deva Nath Ji Paatawi
53. Sh. Shri 1008 Shri Durlabhram Ji Maharaj
54. Mahant Shri Nirmal Ram Ji Maharaj
55. Sh. Beela Baba Ji
56. Swamy Karmveer Ji Maharaj
57. Pujya Guru Shri Satyapal Ji Maharaj
58. Swamy Sadashivanand Ji Maharaj
59. Sh. Shri 1008 Mahant Bhudevdas Ji Maharaj

GURJARS IN MUSLIM DHARM (Auliyas & Sufis):

60. Hazarat Baba Ji Sahab Laarvi (Abdulla)
61. Hazarat Baba Ji Sahab Laarvi (Nizamuddin)
62. Miyan Mohd. Poswal
63. Saain Ganji
64. Saain Meera
65. Saain Fakkardin
66. Miyan Noor Jamal Wali
67. Hazarat Shah Jamal Gurjar

GURJARS IN SIKH RELIGION (Guru & Sant)

68. Sant Fateh Singh Ji Maharaj
69. Sant Baba Balwant Singh Ji Maharaj

GURJARS IN JAIN RELIGION

70. Muni Shri Ratanchandra Ji Maharaj

Courtesy: "Gurjaron Ka Sampoorn Itihaas" by Ch. Khurshid Bhati Ji